बड़ी लम्बी सी मछली की तरह लेटी हुई पानी में ये नगरी
कि सर पानी में और पांव जमीं पर हैं
समन्दर छोड़ती है , ना समन्दर में उतरती है
ये नगरी बम्बई की..
..
यहां जीना भी जादू है
यहां पर ख्वाब भी टांगों पे चलते हैं
उमंगें फूटती हैं, जिस तरह पानी मे रक्खे मूंग के दाने
चटखते हैं तो जीभें उगने लगती हैं
यहां दिल खर्च हो जाते हैं अक्सर कुछ नहीं बचता
- गुलझार
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