शिमला के सफ़र का एक मंज़र :
सर्दी थी और कोहरा था
और सुबह की बस आधी आँख खुली थी,
आधी नींद में थी!
शिमला से जब नीचे आते
एक पहाड़ी के कोने में
बस्ते जितनी बस्ती थी इक
बटवे जितना मंदिर था
साथ लगी मस्जिद, वो भी लॉकिट जितनी
नींद भरी दो बाहों
जैसे मस्जिद के मीनार गले में मन्दिर के,
दो मासूम खुदा सोए थे!
एक बूढ़े झरने के नीचे!!
- गुलझार
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