रात कल गहरी नींद में थी जब
एक ताज़ा-सफ़ेद कैनवस पर
आतिशीं, लाल -सुर्ख रंगों से
मैं ने रौशन किया था इक सूरज-
सुबह तक जल गया था वह कैनवस
राख बिखरी हुई थी कमरे में..
-गुलझार
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याच ’त्या’ कविता
या ब्लॉगवरील कविता कॉपी-पेस्ट करता येणार नाहीत.
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