जोरहट में एक दफ़ा
दूर उफ़क के हलके-हलके कुहरे में
’हमीन बरुआ’ के चाय बाग़ान के पीछे
चांद कुछ ऎसे दिखा था
जैसे चीनी की चमकीली कैटल रखी हो!
-गुलझार
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निखळ, खऱ्याखुऱ्या कविता पूर्ण समजायच्याही कितीतरी आधी आपल्याशी संवाद साधतात
याच ’त्या’ कविता
या ब्लॉगवरील कविता कॉपी-पेस्ट करता येणार नाहीत.
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