मै कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब तुझको
तेरे चेहरे भी धुंधलाने लगे है अब तखायुल मे
बदलने लगा है अब वो सुबह शाम का वो मामूल
जिस में तुझसे मिलने का भी मामूल शामिल था
तेरे ख़त आते रहते थे ..
तो मुझको याद थे तेरे आवाज के सुर भी
तेरी आवाज को कागज पे रख के
मैंने चाहा था की पिन कर लूँ
वो जैसे तितलियों के पर लगा लेता है अपनी एल्बम में
वो तेरे बे को दबा कर बात करना
wow पे ओठों का छल्ला गोल हो कर घूम जाता था
बहुत दिन हो गए देखा नहीं, न ख़त मिला कोई
बहुत दिन हो गए ,सच्ची..
तेरी आवाज की बौछार में भींगा नहीं हूँ मै..
मै कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब तुझको ...
-गुलझार
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