न वो पुराने हुए है ,न उनका रंग उतरा
कहीं से कोई भी,सीवन अभी नहीं उधरी
इलायची के बहुत पास रखे पत्थर पर
जरा सी जल्दी सरक आया करती है छाँव
जरा सा और घना हो गया है वो पौधा
मै थोडा-थोडा वो गमला हटाता रहता हूँ
फकीरा अब भी वहीं मेरी coffee देता है
गिलहरियों को बुलाकर खिलाता हूँ बिस्कुट
गिलहरियां मुझे शक की नजर से देखती है
वो तेरे हाथो का मस जानती होगी
कभी-कभी जब उतरती है, चील शाम की छत से
थकी-थकी सी जरा देर lawn में रुककर
सफ़ेद और गुलाबी मसुम्बे के पौधे में ही घुलने लगती है
की जैसे बर्फ का टुकड़ा,पिघलता जाये whisky में
मैं scarf दिन के गले से उतार देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन पहनके,अब भी मैं
तेरी महक मे कई रोज काट देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन,टंगे है lawn में अब तक
-गुलझार
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