काल, तुझसे है होड मेरी: शमशेर बहादुर सिंह

काल, 
तुझसे होड़ है मेरी : अपराजित तू- 
तुझमें अपराजित मैं वास करूँ। 

इसीलि‌ए तेरे हृदय में समा रहा हूँ
सीधा तीर-सा, जो रुका हु‌आ लगता हो- 

कि जैसा ध्रुव नक्षत्र भी न लगे, 
एक एकनिष्ठ, स्थिर, कालोपरिभाव, भावोपरि 

सुख, आनंदोपरि 
सत्य, सत्यासत्योपरि 
मैं- तेरे भी, ओ’ ’काल’ ऊपर! 
सौंदर्य यही तो है, जो तू नहीं है, ओ काल ! 

जो मैं हूँ- 

मैं कि जिसमें सब कुछ है... 

क्रांतियाँ, कम्यून, 
कम्यूनिस्ट समाज के 
नाना कला विज्ञान और दर्शन के 
जीवंत वैभव से समन्वित 
व्यक्ति मैं। 

मैं, जो वह हरेक हूँ
जो, तुझसे, ओ काल, परे है...
काल, तुझसे होड़ है मेरी। 

-शमशेर बहादुर सिंह

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