छोटी छोटी चित्राईं यादे
बिछी हुई हैं लम्हों की लॉन में..
नंगे पैर उनपर चलते चलते
इतने दूर आगये हैं के
अब भूल गए हैं के जूते कहाँ उतारे..
एडी कोमल थी जब आये थे
थोड़ीसी नाजुक हैं अभी भी
और नाजुक ही रहेगी -
उन खट्टी मीठी यादों की शरारत
जब तक उन्हें गुदगुदाती रहेगी..
सच, भूल गए हैं के जूते कहाँ उतारे थे
पर लगता है,
के अब उनकी जरूरत नहीं!
-सत्यांशु सिंग, देवांशु सिंग
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