सी धुन वो तुम्हें क्यूँ बुलाती नहीं पास अपने, पड़ा सोचता हूँ;
थाम हाथ लहरें कहाँ ले चलेंगी- रेत पर तुम्हारे खड़ा सोचता हूँ;
खोल खिड़कियाँ जब धूप गुदगुदाए, क्यूँ नींद में पड़े हो, क्या ख्वाब की कमी है?
अखबार और बेड-टी के पार भी है दुनिया - मैं रोज़ इन सवेरों में गड़ा सोचता हूँ..
-सत्यांशु सिंग, देवांशु सिंग
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